तेरी याद में


 तेरी याद में 

रात को नींद न आती तेरी याद में
अपना सब कुछ लुटा दिया तेरी याद में

अब तो दरस दे जा ए मेरे मन के हीर
अब तो तरस खा जा मेरे मन के पीर
खिले गुलाब उपवन के मुरझाने लगे हैं
अब तो निगाहें कर ए मेरे मन के धीर

दीप देहरी जलाया है तेरी याद में
रात को नींद न आती तेरी  याद  में

करें धरा श्रृंगार हरित चुनरी ओढ़ कर
कोयल चिढ़ाए मुझे मन मिश्री घोलकर
बाग  में  मस्ती  से  मोर  नाचने  लगे
बरखा तन भिगाए अपना दिल खोलकर

शीतल पवन सताए   मुझे   तेरी   याद  में
रात  को  नींद  न  आती  तेरी  याद में

तितलियों के पंखों पर लिखी चिट्ठियां
सनम खोल दो तुम आकर बंद मुट्ठियां
घर लगने लगा मुझें तो अब शमशान  सा
मिल ना जाएं मेरी सांसों को छुट्टियां

पागल   हो   गया   हूं   मैं  तेरी   याद में
रात  को  नींद  न  आती  तेरी  याद में
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक)   कोंच

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