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देश में आर्थिक विषमता का ये ग्राफ है,
धनी मानी आदमी की हर गलती माफ है!
गरीब लोग जीवन ऊहापोह में जीते हैं,
अमीरों के पिंजरे में, आंसू बहाता इंसाफ़ है!
मजदूर रोटी दाल पर, मशक्कत करता है,
अमीर काजू बादाम पर, मुंह करता साफ़ है!
भव्य मन्दिर में भी, अमीरी का बोलबाला है,
गरीब की कुटिया में, मायूसी की ही छाप है!
श्रम के बिना पूंजी किस तरह काम करती है,
अमीरों को लगता है कि ये मिथ्या प्रलाप है!
ऐसी परिस्थितियों में, देश कैसे आगे बढ़ेगा,
समाजवाद कैसे आएगा, सोचना ही पाप है?
मौलिक एवं अप्रकाशित,
पद्म मुख पंडा,
ग्राम महा पल्ली डाकघर लोईंग
जनपद रायगढ़ छ ग 496001
Tags:
कविता