जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए

जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए

जो भी प्यार से मिला जहां,
मित्रों, हम उसी के हो लिए।
न गीला न शिकवा किसी से,
मन भर आया, तो रो लिए।
जख्म अपना छुपाए ही रखा,
बंद पलकों को भिगो लिए।
जो भी प्यार से……….

सफर में आ गई नींद जहां पे,
बिन विस्तार, वहीं सो लिए।
दूसरों के गम जख्म के भार,
अपने कंधों पर मैंने ढो लिए।
सपनों के मुलायम धागे मिले,
अश्क के ही मोती पिरो लिए।
जो भी प्यार से………

सफर जिंदगी का चल रहा है,
बिखरे सपने सारे संजो लिए।
कांटों की छाती पर साथियों,
बीज फूलों के मैंने बो दिए।
अपने मन के मैल सारे सारे,
नयन जल में मैंने धो लिए।
जो भी प्यार…………

प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।

सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार

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