( विजय पंडा रायगढ़ छत्तीसगढ़ की कलम से)
सरस्वती माँ हे! पुस्तक धारिणी
हंसवाहिनी माँ हे! मंगलकरिणी।
विद्या दात्री माँ हे!नभ जग तारिणी
वीणा झंकृत कर माँ हे!पाप हारिणी।।
सरस्वती माँ भवानी ब्रह्ममुख वासिनी
हे!तम नाशिनी माँ पुस्तक धारिणी।
ज्ञान अज्ञान विभेद कर पय प्रदायिनी
कर मन मेरी शुद्धि माँ हे!हंस वाहिनी।।
नित प्रकाश दे शब्द वाक्य दे माँ
मन मष्तिष्क में झँकृत तार दे माँ।
ज्ञान दात्री माँ! चक्षु निहार दे माँ
करुणामयी हे! छंद रस ताल दे माँ।।
ज्ञान विज्ञान का नव सन्देश दे माँ
पीयूष जगत का रस बहा दे माँ।
प्रकृति जगत में नव संचार दे माँ
नभ धरा में सदमार्ग दिखा दे माँ।।
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कविता