याद आते रहेंगे संघर्ष के पर्याय "सनत कुमार पंडा"।

याद आते रहेंगे संघर्ष के पर्याय "सनत कुमार पंडा"।

नही रहे गढ़उमरिया के श्री सनत कुमार पंडा। वे एक पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने वाले एक व्यक्ति नही अपितु एक व्यक्त्तित्व थे।जिन्होंने  अपने शिक्षक के दायित्वों को ही नही निभाया बल्कि समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाते हुए अपने ऊँची विचारों को सब के सामने रखा व एकता के सूत्र में बाँधने का हरसम्भव प्रयास भी किया। कभी उन्होंने सकारात्मक विचारों को लेकर समझौता नही किया और आगे बढ़ते रहे। यही कारण है कि उन्होंने शिक्षक जैसे पद से कुछ माह पूर्व त्यागपत्र देकर रायगढ़ विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दम दिखाया तो जिंदल के खिलाफ 'सत्यभामा प्रकरण" जैसे मोर्चे में शामिल रहकर मुखर भी रहे।आज भी संस्मरण है उस जमाने में छोटे बड़े अखबारों के माध्यम से अपने विचारों को जनमानस के मध्य रखते रहे व लोगों के हित के लिए संघर्ष करते रहे।विद्यालय के पगडंडियों से लेकर समाज तक एवं घर के दालान से लेकर गाँव तक अपनी शिक्षा एवं ज्ञान से लोगों को आलोकित करते रहे। वे संस्कृत हिंदी उड़िया भाषा सिर्फ जानते ही नही अपितु पहचानते थे ; समझते भी थे ; यही कारण कई पारिवारिक सामाजिक मंचो में लोगों को सिख दिया करते थे कि हमारी संस्कृति की पहचान है "भाषा" एवं " बोली"।समय की प्रवाह में लोग आते है व जाते है लेकिन स्मरण रहते है वे लोग जो सामूहिक भावना को लेकर निरन्तर संघर्ष करते रहते है अपनो के लिए ; हमारे लिए। "उदार चरितानां वसुधैव कुटुम्बकं" को ध्येय वाक्य को मानने वाले वे आज हमारे बीच नही है लेकिन शिक्षा सँस्कृति समाज राष्ट्र को लेकर जो उनकी परिकल्पना थी उनके विचारों को आत्मचिंतन करना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
जब जब भी पूर्वांचल के इस क्षेत्र में शिक्षा सँस्कृति समाज की बात होगी तो लोगों को  ; उनके सैकड़ों छात्रों को याद आते रहेंगे "सनत कुमार पंडा"।
           सादर श्रद्धांजलि

             ✒  विजय कुमार पंडा

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