जिज्ञासा

जिज्ञासा
              
जिज्ञासु प्रवृत्ति है मेरी,
ख़ुद से हूं अनजान।
फिर भी सदा चाहता हूं,
मिले कहीं से ज्ञान।
यह पृथ्वी बनी होगी कब,
यह निर्मल आकाश?
पर्वत, नदियां, झील, समंदर,
कैसे हुआ विकास?
यह दिनमान बनाया किसने,
नभ में तारे कौन?
बहती हवा, आग जो जलती,
रहते हैं पर मौन!
सबसे अद्भुत लगता मानव,
किसने इसे बनाया?
पशु पक्षी कीट पतंग सब,
ब्रह्माण्ड कहां से आया?
इन सब बातों को लेकर,
मन में उठती जिज्ञासा,
कुछ बेचैनी सी होती है,
फिर जगती है आशा!
क्या सचमुच ईश्वर है जिसने,
यह ब्रह्माण्ड रचा है,
और बनाना भी है बाकी,
जो कुछ यहां बचा है?
या फिर यह ब्रह्माण्ड स्वतः ही,
उद्गम हुआ अचानक,
सच क्या है, हम कैसे जाने,
इसका क्या है मानक?
जो भी है, ज्ञात हो सकता,
मन में है जिज्ञासा,
सतत् शोध का विषय बना है,
होगी पूरी आशा!!

स्वरचित एवम् मौलिक,
पद्म मुख पंडा
ग्राम महा पल्ली
पोस्ट लोइंग
जिला रायगढ़ छ ग

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

Previous Post Next Post

Contact Form