"शब्द" इसे सुनते ही हमारे मन मस्तिष्क में अनेकों शब्द गुंजायमान होने लगते हैं!
आखिर क्या है शब्दों का रहस्य?क्यों हम कभी किसी शब्द को सुनकर उद्वेलित होते हैं?
तो कभी अपने मनभावन कर्णप्रिय शब्दों को सुनकर आनंदित होते हैं !
कहीं ना कहीं शब्द हमारे जीवन का ही नहीं हमारी आत्मा की संतुष्टि का एक सशक्त माध्यम है वह शब्द ही तो थे जिसने महाभारत कराया, राम वनवास कराया,
एक वह भी शब्द थे जिससे इस धरा की सबसे पवित्र ग्रंथ गीता का आविर्भाव हुआ,
शब्दों से ही डाकू बाल्मीकि से ब्रह्म ऋषि बाल्मीकि हुए,
" शब्दों की पराकाष्ठा को समझना और उससे अपने स्वभाव के अनुसार परिवर्तित करना बड़ा दुष्कर कार्य है"
"शब्द शब्द सब कोई कहे शब्दन हाथ न पांव "
एक शब्द औषधि करे एक बनावे घाव"
जो इन शब्दों का मर्म समझ लेता है वह कहीं गालिब कहीं दूर कहीं तुलसी कहीं मेरा कहीं रसखान कहीं बुद्ध कही कबीर हो जाता है!!
मैं भी कोशिश करता हूं कभी-कभी की शायद कहीं कोई शब्द मेरे लिए भी इस ब्रह्मांड में रचा गया होगा जिससे यह प्रकृति मुझे अपने बारे में कुछ लिखने का अवसर देगी!!
शब्दों के माध्यम से ही प्रेम के एहसास को जिसको उद्धव ने गोपियों को समझाया था,
भगवान विष्णु ने नारद को समझाया था, शंकर ने पार्वती को सुनाया था,
शब्दों की महिमा बहुत निराली है
मैं जो लिख रहा हूं मैं शब्द ही लिख रहा हूं! आप सोच रहे हैं आप सभी शब्द ही सोच रहे हैं क्यों?
पूरी सृष्टि शब्दों के आधारशिला पर ही है बस इनको व्यक्त करने के माध्यम पृथक पृथक हो सकते हैं!!
शब्द इस चराचर जगत में जितने भी चेतन प्राणी हैं जीव हैं चाहे वह पंछी नदियां, तालाब, पहाड़, फूल, वृक्ष सभी के पास अपने अपने शब्द हैं, यह संसार शब्दों का मायाजाल है!! शब्द की महिमा अनंत है"
मेरे पास भी है कुछ शब्द मैं लिख लूंगा कभी जब या मेरे अंदर से निकलेंगे कुछ ऐसे शब्द जो मेरे अस्तित्व को दुनिया के सामने लाएंगे बस में उसी शब्द के इंतजार में हूं बस एक शब्द बस एक!!
अभिषेक मिश्रा
बहराइच
उत्तर प्रदेश
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