रामनवमी के विशेष अवसर पर :-राम का रूप

रामनवमी के विशेष अवसर पर :-
राम का रूप

एक राम दशरथ का बेटा ,
एक राम घट घट में बैठा ,
एक राम से सकल उजियारा,
एक राम जगत से न्यारा ।
     कबीर की इस वाणी से राम का चार स्वरूप हमारे समक्ष आता है। रामनवमी का त्यौहार की याद आते ही दशरथ पुत्र श्रीराम की स्मृति होती है। चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, नवमी तिथि को श्री राम का इस पृथ्वी पर अवतरण हुआ। मां पृथ्वी अपनी गोद में राम को पाकर लहलहा उठी। चारों तरफ हरीतिमा की सुंदरतम छवि का विकिरण  फैल गया।  हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार विश्व का संपूर्ण ऊर्जा, जिन्हें ज्ञानी जन परम तत्व कहते हैं। परम तत्व के रूप में जिन्हें संत संन्यासियों ने जाना। वही  सशरीर बाल रूप में राजा दशरथ के पुत्र ,माता कौशल्या के गर्भ से अवतरित हुए। पृथ्वी उस दिन धन्य हुई ,जिन्होंने अपने आकर्षण बल के द्वारा सृष्टि के संचालक को अपने तरफ आकर्षित किया ।उन्हें इस धरा पर धैर्य पूर्वक आदर्श की ज्योति प्रज्ज्वलित करने के लिए सआग्रह अपने गोद में उतार लिया ।धन्य है वह मां, धन्य है यह पृथ्वी ,इन्हें मेरा शत-शत नमन।
     साधारणतया सभी के जीवन में कभी ना कभी कुछ ऐसा क्षण अवश्य आता है ।जो हमे दैवीय जान पड़ता है ,कुछ अलौकिक जिसका हमें अनुमान नहीं होता। परंतु दैवीय गुण हमारे अंदर मौजूद है ,जिस कारण हम कुछ क्षण के लिए उसे महसूस करते हैं जो अद्भुत ,अलौकिक प्रतीत होता है । तब अनुभूत करने की बात है कि जब पूर्ण परमात्मा का अवतरण धरा पर हुआ होगा ।वह क्षण कितना अद्भुत ,कितना अक्षुण्ण रहा होगा। पृथ्वी के सभी जड़ चेतन पदार्थों का अनुभव कितना अलौकिक होगा। नदियों की जल धाराएं अमृतधारा के रूप में प्रवाहित हो रही होगी। पर्वत श्रृंखलाएं मौन निशब्द  होकर प्रभु के आगमन पर आभार प्रकट किया होगा। खेतों में कनक की बालियां लहरा रही होंगी। पक्षियों का कलरव मधुर गान में परिवर्तित हो गए होंगे। फलदार वृक्ष फलों के भार से झुक गए होंगे। बिना ऋतु के फलों वाले वृक्ष पर भी फलों का राज फैल गया होगा। छायादार वृक्षों से मंद और शीतल हवाएं अठखेलियां करने लगी होगी ।दुधारू गायों की थनें दूध से भारी हो रहे होंगे तो कुछ गायें अपने ममत्व को रोक ना पाई होंगी और दुग्ध धाराएं नि:सृत होने लगी होगी ।सभी ग्रह नक्षत्र जड़वत अपने पथ पर रुक गए होंगे ।समय स्वयं को भूल गया होगा । वनप्रांतों से सुगंधित वायु उठने लगी होंगी। उसी क्षण नीला आकाश धरती पर जन्मे नीलवर्ण शिशु में अपना पूर्ण अस्तित्व को पाया होगा ।वहीं रुप,वही सौंदर्य, वही फैलाव जिस प्रकार वर्षा ऋतु में नीला आसमान जल से भरे हुए काले मेघों से छा जाता है। उसी प्रकार नीलवर्ण शिशु के माथे पर सुंदर काले घुंघराले केश राशि शोभायमान हो रहा था। कमलनयन के ऊपर भ्रमर रूपी पलकें, गुलाब की पंखुड़ी जैसे कोमल अधर पर खेलती मनमोहक मुस्कान ।देवर्षियों को  मुग्ध कर रखा होगा कि अपने कौतूहल स्वभाव वश शिशु ने किलकारी मारी होगी। सब की तंद्रा टूटी और सस्वर संपूर्ण प्रकृति जय घोष के साथ प्रभु राम की लीला का गान प्रारंभ किया होगा। उस राम के गुणों का गान जो संपूर्ण विश्व के कण-कण में विराजमान है ।जो सबका हित करने वाला है। उनके रूप,गुण, संपूर्ण लीलाओं का आह्वान हुआ ।
     गोस्वामी जी ने उसी को चित्रित करते हुए लिखा है :-
     भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी ।
     हर्षित महतारी मुनि मनहारी अद्भुत रूप निहारी ।।
     धरती पर  स्वर्ग उतर आया था । सभी हर्षित और प्रमुदित थे। दीन-दरिद्रता का कहीं लक्षण भी नहीं दिख रहा था। नगर वासियों से लेकर दास-दासियों के घरों में भी घी के दीपक प्रज्वलित हो रहे थे। सुख समृद्धि की स्वर्णिम किरणें चारों तरफ अपनी प्रभा बिखेर रही थी। संगीत की स्वर लहरी से अद्भुत समन्वय का समागम हो रहा था। वाद्य यंत्रों की मधुर ध्वनि संग वायु अठखेलियां कर रह था। स्वर्ग लोक से देवगण आकर राम के बाल मुख की एक छवि पाने के लिए तरह-तरह की युक्ति लगा रहे थे। माता कौशल्या पुत्र का मुख देखकर अघाती नहीं थी ।जन्मों का सौभाग्य पूर्ण हुआ था। रानी कौशल्या और राजा दशरथ के सौभाग्य की चर्चा सभी लोकों में हो रही थी। जहां राम की छवि निहारने के लिए देवगण स्वर्ग लोक से आ रहे थे ,वही पुत्र रूप में राम को पाकर राजा दशरथ स्वयं को देखने के लिए दर्पण उठाए।वे स्वयं को देखना चाहते थे । गोस्वामी जी की पंक्ति है :- राय सुभाय‌ मुकुर कर लीन्हा। वदन विलोकि मुकुटू सम कीन्हा।।
     दर्पण में मुंह देखना सांकेतिक भाषा है। तात्पर्य है आत्मनिरीक्षण करना।हम सभी दर्पण देखते हैं।हमे अच्छा लगता है,अपना सौंदर्य अपनी सज्जा देखकर। परंतु यदि हमें कोई कहे , दर्पण में मुंह देख लो।तो तुरंत क्रोध आ जाएगा। अर्थात कोई अन्य हमारी कमियों की ओर इंगित कर रहा है,यह असहनीय होगा।
     राजा दशरथ श्री राम की पूर्णता को देखकर स्वयं का अवलोकन किया ।श्री राम तो सर्वत्र हैं ,पूर्ण है। उनकी पूर्णता को देखकर हमारे जीवन में पूर्णता नहीं आ सकती। हम उस धन्यता को नहीं जान सकते। जीवन धन्य तब होगा, जब हम पूर्णता को देखकर अपने जीवन की अपूर्णता को दूर करेंगे। अपनी कमी को देखने की प्रेरणा प्राप्त करेंगे ।दूसरे की आनंदमय जीवन को देखकर हम स्वयं आनंदमय नहीं हो सकते ।उसके लिए आनंद रस की उत्पत्ति अपने भीतर करनी होगी। राजा दशरथ सद्ज्ञानी थे, वे श्रीराम की पूर्णता को देखकर आत्ममंथन की ओर प्रेरित हुए। उन्हें आभास हुआ कि जब तक स्वयं के जीवन में कमी होगी ।तब तक ईश्वर के दिए हुए सौभाग्य को पाकर भी व्यक्ति कृतकृत्यतता का अनुभव नहीं कर सकता ।
     जो राम आज अवध वासियों के हर्ष का कारण है ।उनकी पूर्णता को चित्त्त में समाहित कर लिया जाए तभी समग्र सृष्टि को राम की दृष्टि के समान देख पाएंगे ।संपूर्ण सृष्टि तब राममय हो जाएगा। उन्हीं की ज्योति सर्वत्र दिखाई देने लगेगी। व्यक्ति सत्यता को जान पाएगा। वह जानेगा कि राम से ही यह जगत प्रकाशमान है ।वही राम कभी कर्ता के रूप में और कभी अकर्ता के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित रहता है। हम अपनी कमियों के कारण, अपूर्णता के कारण उस पूर्ण को पहचानने में, महसूस करने में भूल कर जाते हैं ।
     इस रामनवमी हमारा यही अनुष्ठान होना चाहिए कि आरोप-प्रत्यारोप से अलग होकर हम सभी अपना अवलोकन करें ,आत्म मंथन करें ।ताकि पूर्ण परमात्मा की पूजा क्रिया के रूप में केवल मंदिरों में ही जाकर  ना करना पड़े। बल्कि राम  के समग्रता को कण-कण में जानकर, उन्हें महसूस कर सकें। उनके त्याग, करुणा ,प्रेम ,पराक्रम और समन्वय को समझने में हम सभी सक्षम हो सकें। वाद-विवाद से दूर, जाति- धर्म से दूर समग्रता को ग्रहण कर सकें।
     निशा भास्कर (शिक्षिका)
     साधनगर, पालम कालोनी, नयी दिल्ली-45
     दूरभाष-9868533100

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