गौर से सुनो मेरी कलम पर भी कर्ज है
उसके ऊपर भी एक अनोखा सा फर्ज़ है
उसे भी बार- बार एक नाम लिखने का मर्ज है
खता कहो मजबूरी कहो या प्यार कहो
मेरे गुनाहों के किताब में यह गुनाह भी दर्ज है
गौर से सुनो मेरी कलम पर भी कर्ज है
बार - बार कलम के करीब आता है एक नाम
फिर पता नहीं चलता कि सुबह बीती या शाम
मैं खुद ही कातिल हूं खुद के जज्बातों का
सारे के सारे गुनाहों की जड़ मेरी नजर है
गौर से सुनो मेरी कलम पर भी कर्ज है
उसके ऊपर भी एक अनोखा फर्ज है
उसे भी बार - बार एक नाम लिखने का मर्ज है
याद भी खूब आती है और करते भी खूब हैं
रोज रोज होता है मेरे जज्बातों का खून है
अब तो बस रिश्ता मेरा मयखाने तक है
कभी मैं उनके पास चला जाता हूं
कभी मयखाने मेरे पास चले आते हैं
इसलिए लिखता राठौर जज्बात वह खुदगर्ज है
गौर से सुनो मेरी कलम पर भी कर्ज है
उसके ऊपर भी एक अनोखा फर्ज है
उसे भी बार - बार एक नाम लिखने का मर्ज है
महेश राठौर सोनू
गांव राजपुर गढ़ी
जिला मुजफ्फरनगर
उत्तर प्रदेश
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कविता