आज़ फिर उभर आई इक प्यारी सी ग़ज़ल।
ये तसव्वुर-ए-कलम चलती रहे बन के अज़ल।
कभी तो दिल में भर आते हैं उल्फत भरे बादल।
बादल की तरहा लहर जाए उल्फत भरा आंचल।
आज़ फिर उभर आई इक प्यारी सी ग़ज़ल।
कभी तो ये दिल बेकरार होके जाता हैं मचल।
के ख्वाब में आ जाए कोई शोख हसीना चंचल।
सारी कायनात की हुर हो हसीन-ए-जमाल।
नज़र ना लगे लगा दूं रूख़सार पे तील सा काजल।
आज़ फिर उभर आई इक प्यारी सी ग़ज़ल।
उसके सफर-ए-हयात का मैं बन जाऊ साहिल।
शायद यही हैं मेरे तकदीर-ए-जिस्त में तब्दील।
नौबहार सी ज़िन्दगी में मेरे उल्फत हो शामिल।
शायद यही हैं ज़िन्दगी में मेरे रब का आदिल।
"बाबू" आज़ फिर उभर आई इक प्यारी सी ग़ज़ल।
ये तसव्वुर-ए-कलम चलती रहें बन के अज़ल।
--- बाबू भंडारी. "हमनवा" बल्लारपुर...
मो...7350995551
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