भक्त जो पूजे मन से, कालरात्रि महाकाली,
मां भवानी करती है, सदा उसकी रखवाली।
भक्ति गीत
नवरात्रि सप्तमी का दिन है, मैय्या काली आई है,
कालरात्रि रूप बड़ा भयानक है, भद्रकाली आई है।
भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा भी हम कहते हैं माता को,
गले में मुंडमाला पहने, मैया महाकाली आई है।
नवरात्रि सप्तमी का……………
घना अंधेरा सा रंग तन का, बिखरे सिर के बाल,
धर्म को कोई डर नहीं, आज अधर्म का बुरा हाल।
माता की चार भुजाएं, सबके अलग अलग काम,
थर थर कांपते पाप, मां काली मतवाली आई है।
नवरात्रि सप्तमी का ……………
मां के एक हाथ में कांटा, शोभे दूजे हाथ कटार,
तीसरे में नरमुंड, चौथे हाथ प्याला में रक्तधार।
दानव, भूत प्रेत, पिसाच, सारे भाग जाते दूर दूर,
रणचंडी बनकर, रणभूमि में, मां निराली आई है।
नवरात्रि सप्तमी का……………
मैया पाप अधर्म, विघ्न बाधाओं का करती नाश,
पुण्य धर्म का मान बढ़ाती, मन में करती वास।
शुभंकारी भी एक नाम है, मां कालरात्रि देवी का,
भक्तों के लिए लेकर कलियों की डाली आई है।
नवरात्रि सप्तमी का………………
माता अभय, निर्भय, अक्षय, अजय का वर देती,
जो दिल से पुकारता, उसका कल्याण कर देती।
सांसों में मां की नासिका से, निकलती ज्वाला,
रूप बड़ा विकराल है, मां खप्पर वाली आई है।
नवरात्रि सप्तमी का…………….
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार
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