रहनुमा

रहनुमा 

ख्वाब जैसी सजी ,सादगी आपकी ।
भोर भी अब लगी,शाम सी आपकी ।।
अंक मिलते रहे ,जख्म सिलते रहे ।
शब्द ही ना मिले ,जिन्दगी आपकी ।।
जीत के दौर में,प्रीत के शोर में ।
मीत संसार में,बन्दगी आपकी ।।
दूरियाँ ही दवा,गा रही हर गली ।
भाल पर सलवटें ,बेबसी आपकी ।।
नाव मझधार में,चाह पतवार की ।
रहनुमा सी दिखे ,इक हँसी आपकी ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।

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