धूल और हीरा

धूल और हीरा 

विषय कुछ पेचीदा है मगर लिखना बहुत जरूरी है ।
धूल में से हीरा खोजना आज बहुत बहुत जरूरी है ।।

योग और प्राणायाम के बल पर हम खुद को सबल बनाते हैं ।
धूल में पड़े हुए हीरे भी सूर्य का प्रकाश बन चमक जाते हैं ।।

एक छोटी सी चींटी जब पहाड़ को रौंदने की कोशिश करतीं हैं ।
तब बार बार गिरती है मगर फिर भी हौसला कभी न खोती है ।।

उत्थान पतन के मार्ग से होकर नदी पर्वत जब निकलती है ।
कठिन चट्टानों को तोड़ तोड़ कर मार्ग अपना तब बनातीं है ।।

जीवन के कठिन संघर्षों से घबराकर जब निराश हो जाते हैं ।
बड़े बड़े शूरवीर महावीर भी जब समय की धूल में समा जाते हैं ।।

आओ हम योग करें योग से फिर हम मिलकर संयोग करें ।
उत्थान पतन के मार्ग पर चलकर फिर से हम कर्म योग करें ।।

मार्ग की धूल भी तब हीरे मोती में बदल स्वर्णिम आभा बिखराती है।
जीवन की हर मुश्किल धैर्य और संयम से मुमकिन सी हो जाती है।

जीवन में हर क़दम पर धूल के बादल पग-पग पर छाये रहते हैं।
सच पूछो तो पग-पग पर धूल में ही कहीं हीरे मोती पाये जाते हैं।।

अमिट छाप छोड़ कर जब हम इस दुनिया से विदा होते हैं ।
तब समझो मरकर भी हम सदा सदा के लिए अमर होते हैं ।।

जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश 

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