सकारात्मक सोच

सकारात्मक सोच

तरूणा एक गॉंव में रहती है शहर पास में ही है दूरी लगभग दो किलोमीटर है। इस समय प्राइवेट स्कूलों का बहुत बोलबाला है गॉंव के सम्पन्न व्यक्ति हिन्दी/अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को पढ़ाने में रूचि रखते हैं। फीस के साथ अलग से रिक्शा/ऑटो का किराया देते हैं। तरूणा कॉलेज में प्रथम वर्ष में पढ़ती है पर साथ में बच्चों को कोचिंग क्लास भी पढ़ाती है । एक दिन पड़ोस में रहने वाली शुक्ला मेडम ने तरूणा से कहा कि तुम प्राइवेट स्कूल खोल लो तरूणा बहुत चलेगा। तरूणा ने सुनते ही अच्छा! क्या करना होगा मेडम जी ? 
मेडम ने कहा तुम्हें कुछ नहीं करना है हमारे पहचान वाले एक भैया हैं उन्होंने स्कूल के लिए पंजीयन करवाऍं हैं हम उनसे यहॉं पर स्कूल के लिए बात करेंगे । 
दूसरे दिन मेडम के भैया आए तरूणा का बुलावा आया तरूणा को भैया ने एक बेनर दिए और बोले किराये का मकान भी देख लिये हैं,पता दिए कल से आप सुबह आठ बजे से बारह बजे तक प्रवेश लीजिए। तरूणा जी,जी,जी करती रही,भैया जल्दी में थे चले गए । मेडम ने कहा---"समझ में आ गया तरूणा" जी मेडम । 
अब क्या था तरूणा को मनचाहा काम मिल गया वह दूसरे दिन सुबह आठ बजे से गॉंव में बच्चों के प्रवेश के लिए घर-घर पहुॅंची
जैसे ही गॉंव वालों को यह पता चला तो बहुत ख़ुश हो हुए जिनके बच्चे शहर पढ़ने जाते थे वे सभी माता-पिता ने प्रवेश फार्म लिए । 
आज तरूणा आधा गॉंव भी घूम पाई और फार्म खत्म हो गए। लौटकर सीधे मेडम के घर गई ।
मेडम जी नमस्ते, नमस्ते आओ तरूणा बैठो,जी मेडम,मेडम जी भैया जी से बोल दीजिएगा कि फार्म और ला देंगे जो उन्होंने दिए थे वे खत्म हो गए । मेडम चुपचाप तरूणा को ध्यान देखी और बोली हॉं मॅंगवा देंगे तरूणा। जी मेडम हम घर जा रहें हैं बहुत समय हो गया है अभी खाना भी नहीं खाऍं हैं कल आऍंगे मेडम कहती हुई बाहर निकल गई।
चार दिनों में तरूणा पूरे गॉंव में घूम कर प्रवेश फार्म बॉंट चुकी थी ।
फार्म जमा करने स्कूल आना है यह बात सभी को बोल चुकी है ।
अब तरूणा स्कूल में ही बैठती है 
फार्म जमा हो रहे हैं और बच्चे भी 
आने लगे हैं । वह स्कूल में बढ़ती संख्या देखकर एक और शिक्षिका को रखने की सिफारिश भैया से करती है भैया बोले--बिल्कुल रखिए आपका स्कूल है आप को जो उचित लगे आप कीजिए हमें भरोसा है कि आप कुछ भी ग़लत नहीं करोगे। 
अब तरूणा का काम का भार कुछ कम हुआ। प्रवेश करने वाले भी कुछ कम हो गए। एक बुजुर्ग महिला दो बच्चों को लेकर डरते-डरते आई बहन जी नमस्ते, तरूणा नमस्ते अम्मॉं आइए, बहन जी इस बच्चे का नाम लिखवाना है अभी स्कूल नहीं जाता है । तरूणा अच्छा !  दूसरे बच्चों की ओर इशारा करते हुए अम्मॉं जी इसका नाम, उतने में अम्मॉं बोली मेडम इसका दिमाग ठीक नहीं है और हाथ-पैर भी सही नहीं हैं लिखते-पढ़ते नहीं बनेगा इसका नाम लिखवा कर कुछ नहीं होगा। तरूणा ध्यान से बच्चे को देखती है और बोलती है कि अम्मॉं जी इसका नाम भी लिखवाना है। बहन जी इसके पापा कुछ कमाते नहीं है फीस नहीं दे पाऍंगे ? तरूणा ठीक है अम्मॉं जी आप इसकी फीस नहीं दीजिएगा हम इसको मुफ्त में प्रवेश ले लेते हैं आप यह फार्म भर कर सभी जानकारी के साथ कल जमा कर दीजिए। इसकी किसी भी तरह की फीस हम नहीं लेंगे। बच्चे का नाम पवन कुमार लिखा गया सबसे हटकर हाथों में पेंसिल पकड़ा कर तरूणा ने लिखना सिखाया पेंसिल पकड़ने का तरीका सामान्य बच्चों से कुछ हटकर ही बनेगा उॅंगलियॉं सीधी नहीं हैं बालक पढ़ने--लिखने लगा कुछ समय में पवन कुमार कक्षा में सबसे होशियार हो गया परीक्षा परिणाम हमेशा प्रथम श्रेणी में पास होने लगा पॉंच साल बाद तरूणा को शासकीय नौकरी मिल  गई वह स्कूल भैया के हवाले कर दिया । अपनी नौकरी और घर-परिवार में लग गई। पन्द्रह साल बाद तरूणा मायके गई हुई थी। अचानक एक जवान लड़के की आवाज आती है भैया, तरूणा आवाज सुनकर बाहर आती है घर के बाकी लोग बाहर गए हुए हैं अम्मॉं पूजा कर रही है तरूणा कौन ? अरे! पवन आप, पवन तुरंत पैरों को पड़ता है। बेटा तुम तो ठीक हो गए, यह चमत्कार कैसे हुआ? मेडम जी हाथ-पैर दोनों ठीक हो गए हैं एक डॉ शहर से आए थे उनके इलाज से ठीक हो गए थे आप गई है और दूसरे साल हमारा इलाज हो गया । तरूणा के चेहरा में गर्व,ख़ुशी की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही थी। बहुत ख़ुश होकर तरूणा ने कहा-- क्या करते हो पवन मेडम जी हम डाक पाल के पद पर हैं। अच्छा ! बहुत अच्छा लगा पवन हमको सुनकर कि तुम्हारा जीवन बहुत बढ़ियॉं बन गया। किस की शादी के कार्ड बाॅंट रहे हो ? मेडम मेरी, वाह! कहॉं हो रही है? इसी शहर में।
कब है ? 
तीन दिन बाद,
एक  दिन की शादी है।
तरूणा ठीक है आऍंगे।
दादी कैसी है?
दादी अब दुनिया में नहीं हैं।
कब शांत हो गई?
दो साल हो चुके हैं आपको बहुत याद करतीं थीं एक बार आपसे मिलना चाहतीं थीं। जब भी आपकी बात होती थी आपको बहुत दुआऍं देती थीं आपके कारण मेरा जीवन बन गया। ऐसा सभी को बताती थीं।
तरूणा बोली- पवन जीवन एक सकारात्मक सोच रखने वाले इंसान के कारण बना है। 
वह इंसान जो कभी यह नहीं सोचता कि 'यह काम बालक नहीं कर सकता' उससे नहीं होगा,वह कमजोर है जो हमेशा यह सोचता है कि एक बालक के अन्दर सभी गुण हैं आवश्यकता उसे बाहर लाने की उसकी विशेष रूचि जानने की है वह जो चाहेगा बना देंगे। जिसके अन्दर कामों के प्रति रूचि नहीं है वह कुछ नहीं कर सकता, कुछ नहीं बन सकता,और किसी को बना नहीं सकता। जिसके अन्दर कार्यो को करने की रूचि होती है वह कठिनता में भी सरलता का मार्ग खोज लेता है या कठिनाई से घबराता नहीं है, असंभव लगने वाले कामों को भी संभव बना लेता है। ऐसे इंसान के कारण आपका जीवन बना है।
जी मेडम हमने भी आपसे परोपकार करना सीखे हैं सभी का सहयोग करते हैं। और इंसान के अच्छे कार्यों की प्रशंसा कर उसका हौंसला बढ़ाते हैं। 

त्रिवेणी मिश्रा 'जया' जिला डिंडौरी मध्यप्रदेश

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