पुस्तक मेला



पुस्तक मेला
डॉक्टर विधी का लखनऊ से स्थानांतरण प्रयागराज हो गया था ।आज सुबह  जब उसने समाचार पत्र उठाया तो "पुस्तक मेला"  लगे होने का समाचरपढ़ते ही वह खुश हो गयी अपने पति सुमित से बोली दो दिन बाद सब सेटअप करके हम "पुस्तक मेला" चलेंगे।
वह बोले जरूर जी! बहुत दिन से आप कहीं गयी भी नहीं है फिर पुस्तकें पढ़ना तो आपका बचपन से शौक है।
दो दिन बाद अस्पताल से लौटकर वह दोनों "पुस्तक मेला"  पहुँच ही गये विधी कई काउंटर से अच्छी- अच्छी पुस्तकें लेकर आयी तभी सुमित बोले अरे उधर देखो देहरादून वाली कृष्णा खड़ी है !वह भी देख चुकी थी दौड़ कर आयी दीदी आपका सपना मैंने पूरा कर दिया!
विधी बोली क्या !हाँ दीदी 
मेरी दो गीतों की किताबें छप कर आज इस मेले में रखी गयी हैं। दोनों उस काउंटर पर पहुँच गये कृष्णा की किताब पर उसकी वही फोटो लगी थी जो कभी विधी ने अपने कैमरे से खींची थी। विधी ने 50 किताब तुरन्त खरीद लीं, कृष्णा बोली इतनी सारी वह बोली अरे सबको भेजूँगी जो मेरे परिचित तुझे जानते हैं।
वह बोली चलो दीदी चाय पीते हैं सुमित बोले अरे मिठाई भी खायेंगे। तभी कृष्णा के पति सुंदर भी आ गए कृष्णा ने सबका परिचय कराया वह बोली ये वही दीदी हैं जिनके घर में काम करती थी और मंदिर में गीत गाती थी तभी दीदी ने मुझे पढ़ाया था और कहा था अपने गीतों को कॉपी में लिखकर रखो एक दिन किताब छपवाएँगे। 
*दीदी आप चली गयी तब में कमल भैया के घर काम करने लगी थी उनसे मैंने कागज़ के फूल बनाना भी सीख लिया था सुंदर की दुकान उन फूलों की है क्योंकि असली फूल तो मुरझा जाते थे और पैसा बरबाद हो जाता था।* कमलभैया के सहयोग से आज मुझे ये सफलता मिली वह भी यहीं आ गये हैं। 
*विधी सोचने लगी कमल एक कटे हाथ के कारण विकलांग जरूर  हो गया था लेकिन मानसिकता अच्छी होने के कारण आज कृष्णा को आगे बढ़ाने में सहयोग कर गया।  जबकि अस्पताल से आने पर जब थोड़ी देर कृष्णा को पढ़ा देती थी तो सुमित क़भी- कभी उसे बोलता था तुम कहाँ इन सब झमेले में पड़ जाती हो। उनकी नजर सुमित पर पड़ी तो देखा उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू दिखाई दे रहे थे। वही कृष्णा के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुये घर आने के लिए पता बता रहे थे। विधी की मुस्कराहट बढ़ उठी कृष्णा  जो पास आ गयी थी। *कृष्णा बोल उठी !कमल भैया भी आपसे मिलकर खुश होंगे ऑपरेशन से एक हाथ काटकर आपने उन्हें जीवनदान जो दे दिया* । *एक हाथ के बाद भी वो विकलांग बच्चों को "कागज के फूल "बनाकर सिखाते हुए उनके मसीहा बन गए हैं।*
सविता गुप्ता
प्रयागराज।✍️

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