घनी वनस्पतियों से ढकी, लम्बी लम्बी पहाड़ियां,
इस हरित प्रदेश में, उगे हुए वृक्ष और अनगिनत झाड़ियां।
यह मनोरम दृश्य, कितना लुभावना प्रतीत हो रहा है,
पता ही नहीं चलता, कि, समय कैसे व्यतीत हो रहा है?
सुनकर झिंगुर की तान, पक्षियों का कलरव,
हो रहा है मुझे, जैसे स्वर्ग का अनुभव!
कभी दहाड़ता है वनराज, चिंघाड़ता है गजराज,
कंपकंपी सी छूट रही है, मेरे तन मन में आज!
मगर प्रकृति का यह रूप देख कर, मंत्र मुग्ध हूं,
तरू लता वनस्पति को, काटने के, सर्वथा विरुद्ध हूं।
पहाड़ियों से छन कर, बह रहे कितने झरने,
सम्पूर्ण धरती को हरितिमा से भर कर,
मन भावन करने!
जल ही जीवन है, जल ही मानव के लिए
वरदान है,
रहस्य से भरा, ब्रह्माण्ड है, उसका हर रूप
महान् है!
दिनकर पहाड़ियों की ओट में छुपकर, मुस्कुरा रहा है,
जाड़े की धूप सुहानी देकर, सबका दिल चुरा रहा है!
स्वरचित एवम् मौलिक,
पद्म मुख पंडा,
ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग
जिला रायगढ़ छत्तीस गढ़ 496001
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कविता