"मुझे इत्र की गंध पसंद नहीं, मुझे शील,चरित्र, धर्म की गंध और सबसे अधिक विश्वविद्यालय की सुगंध पसंद हैं "
यहीं स्तम्भ थे जीवन के उनके,
इन से बँधा हुआ था दामन ।
पत्रकार, वकील, राजनीतिज्ञ, समाज सुधारक या शिक्षा के अग्रदूत,
किन नामों से करुं सम्बोधित।
"शिक्षा के बिना मनुष्य पशु समान हैं "
यहीं विचार बने उनके,
काशी हिंदू विश्वविद्यालय की नींव का आधार ।
मकरन्द उपनाम से खूब लिखी कविताएं देश पर,
अभ्युदय, मर्यादा, हिंदुस्तान के बन सम्पादक
महिला शिक्षा के बने समर्थक ।।
सत्यमेव जयते का उद्घोष किया,
विधवा पुनर्विवाह का स्वर बुलंद किया ।
" महामना "बनकर विभिन्न मतों के बीच एकता का सूत्रपात किया।
चौरा -चौरी कांड में जब 170भारतीयों को सुनाई गईं सजा ए मौत,
तर्क और बुद्धि के बल पर 151 लोगों को फाँसी से बचा लिया।
न्यायधीश भी नतमस्तक हुआ
देख़ वाणी का तेज ।
सत्य, व्यायाम, आत्मत्याग का
देकर गये संदेश,
भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय
प्रयागराज की भूमि पावन कर गये ।।
मातृभाषा और भारत माता की सेवा में गाथा जीवन की लिख़ गये...
नेहा अजीज़
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कविता