मदन मोहन मालवीय:- जयंती विशेष

मदन मोहन मालवीय जी की जयंती पर सभी भारतीयों को हार्दिक बधाई उन्हीं को मैं अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ
        
         मदन मोहन मालवीय

    भारत की धरती मे अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने महान कार्यों द्धारा विश्व में भारत का नाम रौशन किया है पंडित मदनमोहन मालवीय एक ऐसा नाम है जो विश्व पटल पर आज भी चमक रहा है

    मदनमोहन मालवीय जी आज के ही दिन (25दिसंबर)को पंडित ब्रजनाथ के घर पैदा हुए और सात भाई बहनों मे से पांचवीं संतान थे
उनके पूर्वज मध्य भारत के मालवा प्रांत से आ कर  प्रयाग मे बस गए  थे इसलिए मालवीय कहलाते थे इन्होंने यही नाम अपनाया इनके पिता जी प्रकांड विद्वान थे और कथावाचन से जीवन यापन करते थे

इन्हें संस्कृत भाषा की शिक्षा प्राप्ति के लिए पंडित हरदेव ज्ञानोपदेश पाठशाला मे प्रवेश दिलाया जहां से इन्होंने पांचवीं परीक्षा उतीर्ण की इसके बाद इन्हें प्रयाग विधावधिर्नी सभा द्धारा संचालित विधालय मे भेज दिया जहां से शिक्षा पूर्ण करके वो म्योर सैंट्रल कालेज (वर्तमान ईलाहाबाद विश्वविद्यालय) से मैट्रिक की परीक्षा पास की हैरिसन स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें छात्रवृत्ति दे कर कलकत्ता विश्वविद्यालय भेजा जहाँ से इन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की

  उन्हें बचपन से ही लेखन मे झुकाव था  और वो  मकरंद के उपनाम से लिखते थे और उनकी रचनाओं को काफी सराहा जाता था
      मालवीय जी हिंदी के प्रबल समर्थक थे और अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति सत्य निष्ठा के लिए जाने जाते थे हिंदी भाषा के प्रति इनका अगाध लगाव था और भाषा के प्रचार प्रसार के लिए सतत प्रयास करते रहे और राष्ट्र भाषा की सेवा मे स्वयं को समर्पित किया हिंदी भाषा के उत्थान के लिए मालवीय जी ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई हिंदी भाषा को प्रांत मे लागू करवाने के लिए अवध के गवर्नर को ज्ञापन दिया और अदालतों मे हिंदी भाषा को लागू करवाया 1910 के हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी को राष्ट्र भाषा दिलाने का आह्वान किया और हिंदी को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाने की पैरवी भी की

पत्रकारिता के क्षेत्र में भी ख्याति अर्जित की कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के अनुरोध पर हिंदी समाचार पत्र हिंदोस्तान का ढाई साल कुशल संपादन किया और भारतीय जनता मे चेतना जगाई और साप्ताहिक पत्र का संपादन किया  सरकारी समर्थक समाचार पत्र पायिनर के मुकाबले मे दैनिक लीडर का समाचार पत्र निकालकर करारा जवाब दिया मर्यादा पत्रिका का कुशल प्रकाशन और संपादन किया सनातन धर्म की जागृति लाने के लिए लाहौर से विश्ववंधु  पत्र को निकाला

   राजनीति में इनका योगदान अद्बितीय रहा कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष चुने गए और पचास वर्ष तक सक्रिय रहे और कांग्रेस मे नई जान फूंकी और अंग्रेज़ी शासन का कड़ा विरोध किया स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रिम भूमिका निभाई नर्म दल और गर्म दल के बीच सेतु की भूमिका निभाई अनेक आंदोलनों में भाग लिया और जेल गए अंतिम समय तक स्वराज्य के लिए लड़ते रहे वो प्रांतीय विधायी परिषद और केंद्रीय परिषद के सदस्य रहकर अहम योगदान दिया

   1931मे लंदन मे आयोजित दूसरी गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया भारतीय पक्ष को मजबूती से रखा

  मालवीय जी शिक्षाविद और अध्यापक भी थे  वे भारत में शिक्षा का प्रचार प्रसार चाहते थे उन्होंने इसी उद्देश्य से बनारस मे काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की इन्होंने चंदा एकत्रित करने हेतु भारत भ्रमण किया और देशवासियों ने सामर्थ्य के अनुसार आर्थिक सहयोग किया राजाओं और नवाबों ने भी आर्थिक सहायता दी हैदराबाद के निज़ाम के पास महामना चंदा लेने के लिए पहुंचे तो निज़ाम ने चंदा देने से मना कर दिया लेकिन इरादों के धनी महामना को तो चंदा चाहिए था उन्होंने एक योजना बनाई और निज़ाम की चप्पलें उठाकर नीलाम किया निज़ाम शर्मिंदा हुआ और खासी रकम देकर अपनी ही चप्पल खरीद ली तत्कालीन काशी नरेश ने विश्वविद्यालय के लिए पर्याप्त धन और भूमि दान दी इस तरह भिक्षाटन और अनुदान से ज्ञान का मंदिर खड़ा किया उन्हें भिखारियों का राजा भी कहा जाता था मालवीय जी तीन दशक तक इसके कुलपति भी रहे
रविंद्र नाथ टैगोर ने इन्हें महामना का नाम दिया
मालवीय जी समाज सुधारक थे उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों का विरोध किया,बाल विवाह का विरोध किया विधवा पूणर्विवाह का समर्थन किया महिलाओं के समान अधिकार देने की पैरवी की दलितों के उत्थान के लिए काम किया उनके मंदिरों के प्रवेश निषेध की बुराई के विरोध में राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया जाति व्यवस्था और छुआछूत का विरोध किया
मालवीय जी उच्च कोटि के वकील थे 1891 मे वो बैरिस्टर बने और ईलाहाबाद मे वकालत आरंभ की लोग इन्हें गरीबों का वकील कहते थे वो गरीबों की निशुल्क पैरवी करते थे उन्होंने क्रांतिकारियों के मुकदमे की पैरवी की और उन्हें फांसी के फंदे से बचाया चोरी चोरा कांड मे 170लोगों को फांसी की सजा हुई 153 लोगों को फांसी के फंदे से बचाया

भारत सरकार ने उनकी सेवाओं के लिए 2015 मे भारत रत्न का सर्वोच्च पुरस्कार प्रदान किया 
राष्ट्र इनकी बहुमूल्य सेवाओं का सदा ऋणी रहेगा

    अशोक शर्मा वशिष्ठ

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