अटलबिहारी वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक-संघ के सपर्पित राष्ट्रीय भावधारा के ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी भाषा और राष्ट्रीयता की अभिव्यक्ति उनके विरोधियों को भी बाँध लेती थी । उनके भीतर उदात्त मनुष्यता से लबरेज़ एक राष्ट्रभक्त कवि था । उस कवि की कविता को कोई आलोचक अपनी आलोचना की कसौटी पर चाहे जहाँ स्थापित करे या करना चाहे, पर अपनी काव्यात्मक भाषा के दम पर, आँखों में आत्मविश्वास की चमकती दिव्य ज्योति के सहारे वे लोगों के ह्रदय में उतर जाने की कला जानते थे । कभी-कभी सारी परिस्थितियों को दरकिनार कर उनका कवि नैसर्गिक सौंदर्य का भी रस-पान का लेता था । यह उनके व्यक्तित्व का आकर्षण ही था कि तमाम पैबंदों की सरकार दो बार चला ले गए । तमाम शोरगुल के बावजूद जब वे खड़े होते थे सदन में बोलने के लिए तो लोग ध्यान से सुनते थे और वे अपने विरोधी को भी ऐसी भाषा में कुछ कह जाते थे कि वह बुरा नहीं मानता था । उनमें एक दृढ़ता थी । विदेशों में भी अपनी भाषा हिंदी में भाषण देकर अंग्रेजियत के पैरोकार भारतीय अभारतीयों को एक शिक्षा दी कि भारतीयता से प्रेम करना सीखो । अमेरिका के दबाव के बावजूद पोखरण-विस्फोट करके उन्होंने भारत की आत्म-रक्षा की शक्ति का प्रबल परिचय दिया था और पाकिस्तान की जगज़ाहिर दुष्टता के बावजूद मित्रता का हाथ बढ़ाकर भारत की उदारता और विकास की सम्भावना के लिए एक जिम्मेदार राष्ट्रीय व्यक्तित्व का परिचय दिया था । यद्यापि यह भी एक क्रूर उदहारण है कि भारतीय संस्कृति की रक्षा की चिंता में दुबली हो जाने वाली पार्टी ने ऐसे विकास-पुरुष को भूल जाने में देर नहीं लगाई । वे कहाँ किस हाल में हैं, राष्ट्रीय समाचार में कहीं नहीं है । वे हमारे देश के प्रधानमंत्री रहे, किन्तु उनकी खबर लेने वाला उनका कोई सगा नहीं दिखाई देता । अभी पिछले दिनों जिस प्रकार लालकृष्ण आडवाणी को किनारे धकेल दिया गया और फिर भी माया-मोहग्रस्त हिन्दुस्तानी बूढ़े की तरह अपनी और छीछालेदर कराने के लिए "जिंदगी और जोंक"(अमरकांत की एक कहानी) के पात्र की तरह वे भी बेचारे-से बने चिपके हुए हैं, ऐसी मोहग्रस्तता से अटलबिहारी पूरी तरह से मुक्त थे ।
अमलदार "नीहार"
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