आँचल में गर्मी
सर्द हवाओं के झोंकों में सिमटती रही,
नन्हीं सी बच्ची,ठंड और भूख से बिलखती रही।
नाम के पति ने, छीन लिया सब पैसा,
अबला थी तभी तो पिटती रही।
तेज़ बुख़ार की तपन का एहसास,
न भूख थी उसे न थी प्यास,
गोद में मासूम को लेकर मुस्काई,
जिससे बंधी थी , जीवन की आस।
ठंड से मासूम भी काँपने लगी,
ममता की आँचल से झाँकने लगी,
देखते ही देखते मूँद ली आँखें,
साँसों की रफ़्तार से हाँफने लगी।
माँ ने प्यार से हाथ सिर पे फेरा,
एक चीख़ ने किया सब अंधेरा।
झकझोर कर उसे उठाती,चिल्लाती,
आज छीन गया था उसका बसेरा।
बीच सड़क पे दौड़ती
कभी इधर बैठती, कभी उधर जाती।
ममता के आँचल में वो गर्मी न थी,
जो आज उसकी बच्ची को बचा पाती।
जो आज उसकी बच्ची को बचा पाती।
नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़*
मुंबई
*Nilofar Farooqui Tauseef ✍️*
*Fb, IG-writernilofar*
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कविता