विश्वास को ज़िंदा करती ये पंक्तियाँ सचमुच आत्म विश्वास बढ़ाती हैं।"ख़ुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप हैं "

"स्वामी विवेकानंद "
"उठो जागो और तब तक नहीं रुको,
जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता" ।
थके किसी मन में और टूटे 
टूटे तन में,
विश्वास को ज़िंदा करती ये पंक्तियाँ सचमुच आत्म विश्वास बढ़ाती हैं।
"ख़ुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप हैं "
यहीं बात तुम्हारी मन में मेरे ज्योत अमर जलाती हैं ।
उम्र वो पच्चीस की थीं जब
बाइबल, कुरान, गुरुग्रंथ साहिब संग पूंजीवाद और राजनीति शास्त्र के तुमने पढ़ लिए ।
शिकागो में जब पार्लियामेंट ऑफ़ रिलीजन्स तालियों से गूँज उठा,
वो सम्बोधन "मेरे अमेरिकी बहनो और  भाइयों " प्रेम से पूर्ण
निराला था ।
भारत का आध्यात्मिकता से पूर्ण वेदांत दर्शन अमेरिका, यूरोप भी तुमने पहुँचा दिया ।
राम कृष्ण परम् हँस गुरु तुम्हारे नरेंद्र दत्त  को जिन्होंने विवेकानंद बना दिया ।
गीता हो हाथों में पर मैदान में फुटबॉल भी खेलो,
युवाओं की स्नायु मजबूत होनी चाहिए ।
मूल तुम्हारा वेदांत और योग रहा,
युवाओं को सफलता का मंत्र अनमोल दिया ।
"मैं दर्शक हूँ, साक्षी हूँ, बैठे बैठे मन का डूबना उतरना देख़ रहा हूँ ।
मैं मन नहीं हूँ!
अर्थात् ईश्वर और तुममें भेद नहीं
मन तो  निर्जीव हैं ।
कितनी सरलता से 
ईश्वर निराकार हैं सब जीवों में परमात्मा का अस्तित्व हैं तुम कह गये ।
धर्म किताबों में नहीं न धार्मिक सिद्धांतो में हैं,
वो तो अनुभूति में हैं ।
ग़रीब, दीन दुःखी  मानव ही ईश्वर  का रूप हैं,
अंधविश्वास, रुढ़ीवादिता छुआछूत, वर्णभेद से घृणा तुम्हारी
समानता और सहयोग से  अलंकृत दर्शन को बताती हैं ।
जिसे पाकर युवा बुजुर्गों, पूर्वज, संस्कृति या मानवता का शत्रु बन जाए क्या वो शिक्षा हितकारी हैं?
क्लर्क पैदा करना  ही क्या इसका उद्देश्य हैं
चिंतन ये तुम्हारा  शिक्षा की अवधारणा पर  प्रश्न खड़ा करता हैं ।
जो मानवीय गुणों से तुम्हें भर दे
चरित्र का विकास करें,
 शिक्षा वही हैं जो तुम्हें इंसान बनाए ।

 गौ रक्षक बोला तुमसे जब "मैं गौ माता की कसाई से रक्षा करता हूँ
तब सवाल तुम्हारा दीन दुःखी या भूखे मानव के लिए क्या करते हो?
वह बोला "वो तो पाप भोग रहा हैं "
तब तुमने कहा "गाय भी अपने किसी पाप से ही कसाई के पास जाती होगी "
कितना संवेदनशील तर्क तुम्हारा निज दर्पण में चेहरा समाज का दिख ला गया ।
वेद, पुराण, उपनिषद, साहित्य, कला, इतिहास का विस्तृत अध्य्यन तुम्हारा,
हमें राज़ योग, कर्म योग, ज्ञान योग बतला गया ।
माता -पिता का तर्क शील, प्रगतिशील दृष्टिकोण,
 व्यक्तित्व तुम्हारा गढ़ गया ।
"शक्ति जीवन हैं
कमजोरी ही मृत्यु "
सत्य ये जीवन कहा तुमने  का अटूट हैं ।
बेलूर में वो चंदन की चिता
जिस पर तुम  अल्पायु में सो गये,
पर न जाने कितनी बंद अँखियो को आज भी खोल रहे हो ।
भारत को अगर समझना हैं तो
विवेकानंद को पढ़ना चाहिए ।
बात ये टैगोर भी कह गये ।
नेहा अजीज़

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