हाथ के तर्जनी उंगली में लोकतंत्र के महापर्व का निशान लगवा गर्व से कहता हूँ :-
हाँ मैं मतदाता हूँ!
परिपक्व लोकतंत्र में अपने सवालिया मुद्दों से कुचला जाता हूँ...?
.......गर्व से कहता हूँ:-
हाँ मैं मतदाता हूँ!
साम्प्रदायिक द्वेष-घृणा का पाठ पढ़,
अब मोहर के जगह बटन दबा आता हूँ ।
........गर्व से कहता हूँ:-
हाँ मैं मतदाता हूँ
अपने कर से कर देकर विकास के सर्वसमावेशी गति में छूट जाता हूँ।
........गर्व से कहता हूँ:-
हाँ मैं मतदाता हूँ
शोषण, अत्याचार, बेरोजगारी महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य...
अब मेरे मुद्दे नहीं,
क्योंकि जाति-धर्म, मजहब सम्प्रदाय में बंट बिखर जाता हूँ
........गर्व से कहता हूँ:-
हाँ मैं मतदाता हूँ !
@कमलेश निराला
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कविता