अब्बड़ आस लगाए हो
धनी पुन्नी मेला घुमादे ।
सऊख रखे हंव किंदरे के
किंदार के मोला लादे ।
साल भर में माघी
मुन्नी एके घाँव आथे।
संगी जहुंरिया संग घूमे
बर हमरो मन हो जाथे।
बड़ दिन के आस रीहिस
कब आही पुन्नी मेला ।
माई पीला जबो संगी
गावत रेलम रेला।
जाके पहली धक्का खाबो
तब खाबो जाके गुपचुप।
घूम फिर थके घर
आबो रतिहा कले चुप।
रचनाकार योगिता साहू
कुरूद धमतरी छत्तीसगढ़
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छत्तीसगढ़ी कविता