डियर कलम

डियर कलम 

डियर कलम  काश तुम कभी
मेरे जज्बात समझ पाती,
मेरे हालात समझ पाती!
बड़ी शिद्दत से चाहा है तुम्हें,
कई लम्हों में हाथों में पकड़ 
सिर्फ तुम्हारी इबादत की है! 
इतनी नाराज हुई जिंदगी मुझसे 
तब तुम्हें उठाने कि हिम्मत की है 
आज लिख रही हूं तो समझा है तुम्हें
शब्दकोश रूपी भंडारण से शब्दों में ,
ढालकर परिस्थितियों को मैने 
तुम्हें सीखने की कोशिश की है।
न जाने आ जाए कब कौन सा ख्याल,
बस वही लिखने कि कोशिश की है
तू जिंदगी है मेरी आज यह समझ आया
 मुझे सही मायनों में,
तेरे प्यार से ही मेरी बरकत हुई है।।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
मध्य प्रदेश ग्वालियर

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