मोर नाव ,लिखा के तो देख।
तोर हाथ म , मोर नाव
के मेहंदी छपा के तो देख।।
मोर हाथ के परोसे बासी
चटनी ला तो ,खा के देख।
मोर मांग म जिनगी भर बर
लाली सिंदूर लगाके तो देख।।
दऊड़त पल्ला भागे आंहु
तुहर अंगना म संगी
एक घांव तुहर अंगना
म बुला के तो देख।।
सात जनम तो का सौ
जनम साथ निभांहू
मोर मन मंदिर म
तुहीच ला बसाहूं
एक घांव मोर संग
भांवर परा के तो देख।
रचनाकार _योगिता साहू
कुरूद, धमतरी, छत्तीसगढ़
Tags:
छत्तीसगढ़ी कविता