महिला -
जग की अभिमान है
सृष्टि की पहचान है
आकाश की तरंग है
समाज की जागृति पुंज है
बच्चों की ममत्व छाँव है
परिवार की जीवन रेखा है
सँस्कृति की संवाहक है
राष्ट्र विकास की आधारशिला है
बच्चों की प्रथम शिक्षिका है
शाँति - क्रांति की बिगुल है
सुबह को दस्तक देती बयार है।
क्या लिखूँ ?
धरा-अम्बर-क्षितिज तक वह
सदैव से सम्मानीय है
सदैव से गरिमामयी है
सदैव से अग्रगणनीय है
सदैव से धरा तुल्य है
सदैव से स्नेह पीयूष पात्र है
सदैव से धर्मधारिणी है
सदैव से प्रमुख कर्मकारिणी है
सदैव से पल्लवित मोहक पुष्प है
सदैव से वंदनीय है मातृ शक्ति
सदैव से श्रद्धावनत रहा धरा - गगन।
बलिदान त्याग शक्ति शाँति की
परिभाषा यह नही की
सिर्फ
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है।
- विजय पंडा ; छत्तीसगढ़
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कविता