बहुत बड़ा कवि नहीं हूं मामूली कलमकार हूं
अंगारों की सड़क पर बहती ठंडी बयार हूं
कविता करते-करते श्रीमती ने मुझे रोका
अनजाने में बिफरकर बार बार मुझे टोका
कविता में बाधा देख कर मुझे गुस्सा आ गया
मैं श्रीमती को एक जोरदार तमाचा लगा गया
वो बोली क्यों मारा मैं बोला पतिदेव हूं तुम्हारा
जिंदगी के सुहाने इस सफर में हमसफ़र प्यारा
यूं समझो जानेमन तुमसे बहुत प्यार करता हूं
इसलिए एक आघ बार हाथ साफ करता हूं
अच्छा अच्छा पतिदेव तेरी लीला भी न्यारी है
तुमने करतब दिखा दिए अब देखो मेरी बारी है
लात घुसों से कूद पड़ी होकर दुर्गा सी विकराल
चामुंडा सी बरस पड़ी नैन दिखाएं लाल लाल
बनी कालका केश बिखरे नभ घटाएं घिर आई
अगणित भीड़ इकट्ठी हुई शक्तिरूप दिखलाई
पतिदेव ने क्षमा याचना विनती कर कर वो हारा
शक्ति स्वरूपा नारी है पतिदेव रहा बस बेचारा
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
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कविता