जय माता की
माता सबकी भाग्यविधाता रहोचरण लवलीन।
साधु ,संत, मुनी ,संन्यासी हो राजा या दीन।
सब घट अंदर माता रहती रखो सदा हीं ध्यान-
माता के ममता से प्यारे कटे सकल दुःख दिन।
माँ के वंदन अर्चना में रख कर सदा लगाव।
निजअंतःशुचि सरस सर्वदा रखना श्रध्दा भाव।
नम्रता छमता में रमता पा अनूठा आलोक-
तभी मिटेगा मन से तेरे इर्ष्या - व्देष दुराव।
जिसने नामजपा सुखपाया अटल सत्य है जान।
अज-जग मध्य सर्वोपरि वहींबनकर रहा महान।
जन्म सभय अभय हो जाता जप माता का नाम-
सुख शान्ति से जीवन भरता मिले सदा मुस्कान।
माता अस ममता कहाँ शुचि सरस प्यार दुलार।
पल्वित पोषित हो रहा जिससे सकल संसार।
माता ऋण से उऋण होना जग में मुश्किल है -
माँ सेवा से मेवा मिलता लखो पलक उघार।
शेरे वाली माता जी का है सच्चा दरबार।
हर खुशियों का राज वहींपर मिलता सत्यसार।
लगा रहा जो मातु सेवा में लख जगत प्यारे -
देर सबेर हुआ है उसका सचमुच में उध्दार।
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बाबूराम सिंह कवि
बडका खुटहाँ ,विजयीपुर
गोपालगंज (बिहार)841508
मो॰ नं॰ - 9572105032
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कविता