अश्रु क्यूँ बन जाता पानी
*************************
नर जीवन की अजब कहानी ।
अश्रु क्यूँ बन जाता पानी ।
जन - मानस में मधु मानवता,
जग वाणी में भर अनुराग।
नरतन है अनमोल जगत में,
आगे बढ़ मत हो निराश।
कर ना किसी से खींचा - तानी।
अश्रु क्यूँ बन जाता पानी।
किसे पता है कल क्या होगा,
कब टूट जाये जीवन स्वांस।
सेवक बन सेवा कर सबका,
निज स्वार्थ सुख करके त्याग।
छोड़ कटु निन्दा बेईमानी।
अश्रु क्यूँ बन जाता पानी।
धन भौतिकी तन यौवन नश्वर,
कभी किसी का रहा ना काश।
मिथ्या पाप कुकर्म कालिमा,
त्याग तत्काल अन्ध विश्वास।
छोड़ सत्य से आना - कानी,
अश्रु क्यूँ बन जाता पानी।
सभी विकारों से वंचित रह,
सर्वदा स्वयं का करो विकास।
समता सत्य एकत्व शुभ में,
कर प्रभुवर परहित में वास।
जीवन ज्योति बन जाय नूरानी।
अश्रु क्यूँ बन जाता पानी।
कर्म प्रधान ध्यान रख प्यारे,
मृत्यु खडी़ हर पल तेरे पास।
लख चौरासी भ्रमण भंग कर,
माया का कभी मत बन दास।
छोड़ जगत में चाल उत्तानी।
अश्रु क्यूँ बन जाता पानी।
*************************
बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज(बिहार)841508
मो0नं0 - 9572105032
*************************
Tags:
कविता