हे समाज के ज्ञानी,विद्वान

हे समाज के ज्ञानी, विद्वान

करो न्याय सबका  समान,

बिके हो कागज के टुकड़ों पर

करते हो मानवता का अपमान।।

दीन दुखियों को तुम सताते

धनवानों  का  मन  बहलाते,

लेते  रकम तुम भारी - भारी

इसी पैसे से  प्यास बुझाते ।।

कटे घाव पर नमक छिड़ककर

पगड़ी उछालना काम है तेरा,

समाज को खोखला करने वाले

मदिरालय ही धाम है तेरा।।

पहचानो अब तो मानवता को

कब तक रहोगे तुम अंजान,

हे समाज के ज्ञानी, विद्वान

करो न्याय सबका समान.......

कवि - भास्कर वर्मा

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