रात भी ठंडी है,
दिन में भी ठंड है!
असहनीय है ठिठुरन,
हवा को बहुत घमंड है!
लगता है, धूप भी, पतली हो गई है,
अंगीठी की आग, कितनी नकली हो गई है?
पेड़ की ओट में, कुछ राहत है,
वरना हर जगह, हवा की बादशाहत है!!
सुबह सुबह बिस्तर से,
कुड़कुड़ाते, बाहर निकलना,
कंपकंपाते होंठ, सीख रहे हैं,
मौसम अनुसार, पैंतरे बदलना!
ज़ी को कड़ा करके,
हथेलियों को आपस में रगड़ना,
चेहरे पर मलना!
फिर, जब होती है,
सामने अदरक वाली चाय,
उसकी चुस्की लेते हुए,
मुंह से, निकलती है हाय!
शाल ओढ़े, कनखियों से,
सूरज की ओर, निहारता हूं,
अा जाओ मेरे आंगन में, जल्दी से,
हे सूरज, आपको पुकारता हूं!
पद्म मुख पंडा,
ग्राम महा पल्ली,
जिला रायगढ़ छ ग
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कविता