मानव धर्म का मूल यह...

मानव धर्म का मूल यह...

क-कर्तव्य  कर्म  करूणा कौशलसुचि अपनाइये।
ख-खुदको मिटा खुदीमें खुशियोंमें ही खप जाइये 
ग-गौ  गंगा  गायत्री  गुरू गोविन्द गुण नित गाइये 
घ-घट-घटके वासी अघनासी घर घाट परही जाइये 
च-चित  चारू  चन्दन  बने नहीं चोट माया खाइये।

छ- छल छुद्र से छकिये नही छमा छवि बिछाइये।
ज-जीवन ज्योति लौ  जला जागरूक  हो  जाइये।
झ- झूठ झंझट  झार झट झंकार सत्य गुंजाइये ।
ट- टलिये नही हरि टेर से रट के टेक बन जाइये।
ठ-ठग ठीक ठाकुर ठांवका नहीं ठगे से रह जाइये।

ड-डुब भक्तिमें  डटे  रहो डवांडोल ना हो जाइये।
ढ़ -ढ़कोसला ढ़ब  ढो़ंग को ढा़ढ़स से दृढ़  दबाइये 
त - तामस तमस से तन हटा तप त्याग में तपाइये।
थ-थाम्ह थाली नामकी थल थार बन थम्ह जाइये 
द-दुख  दर्द  दारूण  दबा दया दान से यश पाइये।

ध - धर्मात्मा बन ध्यान कर धन ध्येय धर्म लगाइये 
न - नम्र  नन्द  नन्दन  छवि नैनन में नेक बसाइये ।
प - प्रेमातुर रह  परम  प्रभु प्यार पल -पल  पाइये।
फ-फूल फूले प्रेम का फल में नही फंस  जाइये।
ब -बेशक बढो़ निजलक्ष्य पर वीर व्रती बनजाइये।

भ - भक्ति भजन भगवान में भरपुर आनंद पाइये।
म - मुस्कान मानवता महक जग मान से महकाइये 
मानव  धर्म  का मूल  यह  इसको नही  बिसराइये 
अपनाइसे कवि बाबूराम सुख दीजिये सुख पाइये।

बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज ( बिहार )841508
मो0नं0- 9572105032

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