ग़ज़ल
इस तरह इन दिनों जिंदगानी हुई।।
ज्यों लहू से लिखी इक कहानी हुई।।
हादसे हो रहे सैकड़ों इश्क के।
राहसे आज भटकी जवानी हुई।।
चंद रुपयों के कारण जो फिसली मिली।
लेखिनी वो यहां पानी पानी हुई।।
सोचते हैं सभी बेटियों के पिता।
कब बड़ी हो गई कब सयानी हुई।।
झूठ चोरी दगा छल कपट नीचता।
ये सभी रहबरों की निशानी हुई।।
बृंदावन राय सरल सागर एमपी।
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