सुपुर्दे खाक होने पर
तवज्जो देता रहा हूं, इंसानियत को, इस क़दर,
जो भी हो सामने,हर किसी की, करता हूं क़दर
गुस्सा मांगता है पानी, झेल लेता हूं, परेशानी,
आख़िर मिला क्या है, आज तलक, गुस्से में कहीं!
उम्र सिखा देती है, हर किसी को, जीने का तरीका,
बुढ़ापे को देखकर बचपन, जब हंसी उड़ाता है!
जब बदन पे अा जाती हैं, हर जगह पर, झुर्रियां,
आदमी अक्सर ही, छोड़ देता है, आईना देखना
जिन्दगी खत्म होने से पहले, एहतराम हो जाए,
खिल्ली न उड़ाए कोई, हमारे सुपुर्दे खाक होने पर।
पद्म मुख पंडा,
ग्राम महा पल्ली
जिला रायगढ़ छ ग
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कविता