मेरी यात्रा(सच्ची घटना)

मेरी यात्रा(सच्ची घटना)
13 मार्च मेरा रीवा शहर में आने का रेल का आरक्षित टिकट बन गया था मुझे रेल  गाजियाबाद से पकड़नी थी 13 मार्च को मैं घर से लगभग 4:00 बजे चला सबसे पहले मैंने गाँव से गाड़ी पकड़ी  गढी सखावत तक की और गढी सखावत उतरने के बाद वह से मेरठ के लिए गाड़ी पकड़ी जब मै मेरठ में उतरा तो मुझे लगभग 5:30 बज चुके थे अब मुझे वहां से गाजियाबाद की बस पकड़नी थी और मुझे वहां से गाजियाबाद जाने की बस भी पास में ही मिल गई 
जैसे ही मैं गाड़ी में चढ़ा मैने देखा गाड़ी खचाखच भरी हुई थी मैं थोड़ा सा ही चढ़ा था बस वहीं पर खड़ा हो गया 
मैंने बोनट पर अपना बैग रख दिया वहीं पर खड़ा होना ठीक समझा क्योंकि पीछे बहुत ही गाड़ी में सवारी भरी हुई थी जैसे ही गाड़ी मेरठ से निकलकर गाजियाबाद की ओर जाने लगी है तभी जिस गाडी मैं था लगभग मेरठ से 5, 6 किलोमीटर ही गाड़ी गई होगी कि आगे देखें एक गाड़ी जो कि कुछ देर पहले ही मेरठ से गाजियाबाद के लिए चली थी वह खराब हो गई और उसकी सवारी भी वहीं पर खड़ी थी जिस बस में मैं चढ़ा था उसको रुकवा कर उस गाड़ी की सवारी भी इसी गाड़ी में ठूसना शुरू कर दिया  जहां पर मैं खड़ा था वहां पर है 7,8महिलाएं भी खड़ी हो गई जिस से सीट के मैं कमर लगाकर खड़ा हुआ था  उस सीट के पीछे अर्थात मेरे घर के पीछे उस सीट को महिला ने पकड़ा हुआ था और गाड़ी बहुत जोर से चल रही थी बार-बार सभी लोग एक दूसरे से टच हो रहे थे जो मेरे पीछे महिला खड़ी थी वह बार-बार मुझे धकेलती थी और मैं आगे की ओर चला जाता था यह कितनी बार हुआ
मेरे आगे खड़ी हुई  महिला जैसे ही जोर से गाड़ी ने ब्रेक मारे मैं उसकी ओर फिर गिरा मैं अपने आप को बहुत ही सावधान कर कर खड़ा करने की कोशिश कर रहा था कही कोई महिला बुरा ना मान जाए लेकिन मेरे पीछे खड़ी महिला के कारण जब मुझे जोर से पिछले वाली महिला ने धकेला  मैं आगे वाली महिला से फिर टच हो गया अबकी बार उसने पीछे मुड़कर मुझे कहा बहुत ही जोर से चिल्लाते हुए कि तुम्हें तमीज से खड़ा होना है या मैं ठीक करूं इसके बाद उस महिला की सुनते ही आसपास के सवारियों के भी कान खड़े हो गए और मैं बिना करे का कसूरवार हो गया वह महिला 10 मिनट तक भला बुरा बोलती रहेगी और मुझे आगे ठीक करने की नसीहत दी कि तुम गाजियाबाद चलो वहां तुम्हें ठीक करूंगी मन में बहुत ही बुरा भय घर बना गया शुक्र है कि उस महिला का वहां पर किसी भी सवारी ने साथ नहीं दिया अन्यथा मेरे साथ कोई बड़ी दुर्घटना घट जाती वह महिला मारपीट पर उतारू हो रही थी बस मैंने भी उस बस को आगे जाकर अंधेरा हो गया था छोड़ दिया और दूसरी बस से गाजियाबाद गया पर मन में अब तक भी वही दहशत है कि अगर सवारी भी साथ देते तो बड़े दुर्घटना जरूर होते कृपा सभी महिलाओं से निवेदन है कि हर आदमी हर तरीके का नहीं होता कृपा सोच समझकर ही उचित बोला करें बिना गलती करे ही बहुत बड़ी दुर्घटना मेरे साथ घटने से बच गई
 महेश राठौर सोनू की कलम से

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