बेटवा घर ते बाहर निकसौ
तौ मुंह मा लेव मास्क लगाय
ना जानै कौने भेष मा तुमका
कोरोना बाबा मिलि जाय
घुसिकै तुम्हरे पेट के भीतर
वो घर मा घुसि आय
बेटवा घर ते बाहर निकसौ
तौ मुंह मा लेव मास्क लगाय
घर के भीतर तुम जब आयेव
सेनेटाइजर लिहेव लगाय
गलती से कोरोना आई गवा तौ
बाहर ही वो मरि जाय
गले कोहू के नाहिं मिलेव तुम
दुई गज की दूरी लिहेव बनाय
कोरोना तुम्हरे पास ना आई
देखि तुम्हैं डरि जाय
बेटवा जब तुम घर ते निकसौ
तौ मुंह मा लेव मास्क लगाय
यो कोरोना है बड़ा बेशरम
सबके घर मा घुसि जाय
का अमीर हो का गरीब हो
सबका मारिकै खाय
देश विदेशन तक यो फैला
सब दुनिया रही डेराय
भीड़ भाड़ ते बचिकै रहियो
भीड़ै से यो आ जाय
अपनि सुरक्षा अपन हांथ मा
बाहर ना घूमै जाव
ज्यादा मन होय घूमैं का तो
छतै मा घूमि कै आव
अपने घर मा चुप्पैं बैठव
कोहू के घर ना जैव
केवल फोन से हालचाल लेव
अपने घर नहीं बुलैव
पथिक की तुम सब बातैं मानेव
सुनि लेव कान लगाय
बेटवा जब तुम घर ते निकसौ
तौ मुंह मा लेव मास्क लगाय
कवि विद्या शंकर अवस्थी पथिक कल्यानपुर कानपुर
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गीत