आओ अपने मौन
से संवाद कर लें
बिचारों को चमन
में यूं आबाद कर लें
किया कुछ था करेंगे भी
जिये यदि हैं मरेंगे भी
समय के साथ चलना
सीख लें बेहतर ही है
बर्बादियों के संग कहीं
वक्त न बर्बाद कर लें
आओ अपने मौन
से संवाद कर लें
मन्दिरों में घंटियाँ
बजती सही हैं
पर हृदय में भक्ति
अब गहरी नहीं है
कितने झूठे हैं यहा
और कितने सच्चे
माँ की ममता ढूढते
हैं अनाथ बच्चे
आओ इस बचपन को
सभी बाहों में भर लें
आओ अपने मौन
से संवाद कर लें
यदि हुआ है उदय
तो कल अस्त भी है
स्वछंद बिचरण चाहता
और ब्यस्त भी है
जीत है तू चाहता
और मस्त भी है
उठ हो सजग अम्बर
तलक परवाज कर लें
आओ अपने मौन
से संवाद कर लें
राह में कांटे
तूझे ढेरों मिलेंगे
पार कर बाधाओं
को तो गुल खिलेगे
सोंचते जो कल करेंगे
आ अभी आगाज कर लें
आओ अपने मौन
से संवाद कर लें
लिख गये हैं इतिहासों
मे उसको भी तो जान लें
दिल में किसके क्या कसक
उसको भी पहचान लें
ख्वाब थे जो सजाये
आओ अब आंखों में भर लें
आओ अपने मौन
से संवाद कर लें
मौन ब्रत कब तक रखोगे
अब तो कुछ बोलो सही
हो गई है भोर अब तो
आंखें खोलो सही
मर मिटे जो सब की
खातिर अब उन्हे याद कर लें
आओ अपने मौन
से संवाद कर लें
आओ अपने मौन
से संवाद कर लें
उदय बीर सिंह गौर
खम्हौरा
बांदा
उत्तर प्रदेश
9793941034
Tags:
कविता