रहमत है खुदा की मुझ पर
अपना दिल साफ़ रखता हूं!
हां परखता हूं मैं लोगों को
हां मैं उनसे बात करता हूं!
समझता हूं में उनको भी
खुद को भी माफ़ करता हूं ।।
जो कभी खुदगर्ज मिलते है
तो दया का भाव रखता हूं ,
सोचता हूं बस यही कि वो
आदमी है कोई भगवान नही
जो गलती कर नही सकता
में ऐसा मन का भाव रखता हूं ।।
रहमत बनी रहे खुदा की बस
मुझ पर यूंही ताउम्र ए मालिक
दुख न मिलें मेरे कारण कभी
गलतियां रोज लाख करता हूं
हां खुले मिजाज का हूं में
बस में नेक काम करता हूं।।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर मध्य प्रदेश
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कविता