शीर्षक :– चिड़िया
न छीनो आजादी मेरी,
पिंजरे में न कैद करो
पंख पसारे उड़ने दो ,
करने दो मुझे भी क्रीडा
ये विस्तृत अंबर है नीला,
उस की सैर मुझे करने दो
आज धारा पर कहाँ बचे वन,
कहाँ बनाऊं मैं अपना डेरा
आती हूं मैं सबके घर पर ,
मित्र यहां जो भी है मेरा ।।
नन्ही सी चिड़िया हूं मैं,
अपनी मन की बात रखती हूं,
सोच रही हूं कहां है आजादी,
आसमान में जब उड़ती हूं,
इंटरनेट की टेक्नोलॉजी को
इस्तेमाल करने वालो से मैं डरती हूं ,
मुझे नहीं मालूम अदृश्य क्षेत्र ,
जहां बेमौत मैं मरती हूं।।
सबसे यह विनती मेरी, लुप्त हो रही मैं धीरे-धीरे
आजाद चिड़िया हूं मैं! मुझे आजादी से रहने दो,
तुम हो मेरे मित्र सभी ,तुमसे यही आशा है मुझको
समझोगे मेरी विडंबना, मेरा भी घर है प्रकृति में
मुझको भी अब जीने दो।। जीने दो ।।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Tags:
कविता