रोते हुए बच्चे को हंसाना , अच्छा लगता है।
भूखों को भरपेट खिलाना , अच्छा लगता है।।
दोस्त हमारी ताकत हैं , मिलते ही रहते हैं।
दुश्मन को भी गले लगाना , अच्छा लगता है।।
मुझे बुजुर्गों के जीवन से,सीख बहुत मिलती।
अंधे को घर तक पहुंचाना , अच्छा लगता है।।
कब कैसे कोई चुपके से , मन में बस जाता।
फिर भी उनका आंख चुराना, अच्छा लगता है।।
दरबारों में डरकर रहना , कायर का है काम।
खुलकर सच्ची बात सुनाना , अच्छा लगता है।।
बड़ी मोहब्बत होती है , मेहनतकश लोगों में।
ऐसे लोगों के घर जाना , अच्छा लगता है।।
झालर - बत्ती बाजारों के , मुझे नहीं भाते।
दिवाली में दीप जलाना , अच्छा लगता है।।
राजनीति की बातें अब , बेमानी लगती हैं।
बच्चों के संग दिल बहलाना, अच्छा लगता है।।
जितना मन हो उड़ते जाओ , पर वापस आना।
घर-मंदिर खुशियों का खजाना,अच्छा लगता है।।......"अनंग "
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कविता