जुल्फें हैं उलझीं,लब क्यों हैं सूखे

जुल्फें हैं उलझीं,लब क्यों हैं सूखे , 
रहते हो गुमसुम , कहो क्या हुआ है
रहते हो तुम क्यों , कहो खोए खोए
हुआ प्यार है या लगी बद्दुआ है

दमकता था पहले रुखसार तेरा
मानिन्दे गुल सा मुरझा गया है
नजरों में क्यों हैं , वीरानियां अब
छुपाओ ना , कहदो क्या माजरा है

तरस खाओ कुछ तो हालत पे अपनी
क्या बन गए हो , क्या थे कभी तुम
समझ में ना आए , ये मस्ती है या फिर
किसी आमिल ने कुछ कर दिया है

कहाँ जा रहे थे , कहाँ जा रहे हो
कहाँ जाओगे और कहाँ आ गए हो
फिरोगे कहाँ तक , कहो बेइरादा
भटकने को तुमसे , किसने कहा है

ज़माने को खैरात देते हो फिर क्यों
हमारे ही हिस्से में क्यों बेरुखी है
खबर भी है तुमको , क्या कर रहे हो
क्यों कर रहे हो , हमें क्यों सज़ा है

घुटनों में देकर , सिर कभी रोना
खामौश रहना , बेबात हंसना
अखरता है हमको , गुस्ताख ये सब
छुपाओ ना हमसे , कहो मर्ज क्या है

      स्वरचित मौलिक
    गुस्ताख हिन्दुस्तानी
( बलजीत सिंह सारसर )
           दिल्ली

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