ए खुदा मेरी कलम को ज़रा सी ताकत दे मैं सच लिखूं बस इतनी सी हिमाकत दे

ए खुदा मेरी कलम को ज़रा सी ताकत दे
मैं सच लिखूं बस इतनी सी हिमाकत दे

मुझे लड़ना है झूठ से और झूठों से
मेरे  तेवर में  ऐसी तू  बगावत दे

वो कर रहे हैं तार तार अज़मत को
किरदार में उनके थोड़ी सी शराफत दे

लीपापोती हो रही है हर शय की  यहाँ
उठा पर्दा इन लम्हो को जरा सदाकत दे

मेरे हौंसलो को जमाना जान जाए बस
मुझे कोई पुख्ता सी एक अदावत दे

मेरी गली में आना जाना बढ़ जाए, उनका
उनके दिल को मेरे दिल से रफाकत दे

वबा ने छीन लिया सब सुन ऐ ज़माने
बेजार नोजवां को कोई तो तिजारत दे

तोड़ रहा है ख्वाबों को,सबके जाने क्यों
जरा सी जोड़ने की उसको लियाकत दे

मेरा इश्क संभालेगा हुस्न को उसके
मेरे ख्यालों को ज़माने से हिफाजत दे

डॉ विनोद कुमार शकुचन्द्र

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