हाथ पर हाथ रखकर ये वादा करो हमसे।
जीते जी कभी ख़फा तो नहीं हो जाओगी हमसे।
जान की तरह चाह हमने तुम्हें कसम से।
लिख दिया नाम दिल पे तुम्हारा लहु की कलम से।
इतना बेकरार हुआ ये दिल मुहब्बत में।
जैसे मुहब्बत की मूरत बसी हो हमारे मुजस्सिम में।
के खिजा के गुल पर बहार हो इस बरस में।
जैसे माहताब भी नूर हुआ हो खिली हुई धूप में।
कितना हसीन जज़्बातों से भरा होता हैं ये मुहब्बत।
खुली आंखों से देखता हैं शब-ए-सहर ये जन्नत।
मुहब्बत में मदहोश रहता हो गई ऐसी फ़ितरत।
के कमसिन सी हो गई हैं आज इसकी नज़ाकत।
लोगों के दिलों में आज भी जिन्दा हैं इक तारीख बनकर।
के लैला और मजनू ने ज़ुल्म-ओ-सितम सहकर।
"बाबू" जब मुहब्बत का जुनून सवार हो दिल-ए-दिमाग पर।
मुहब्बत-ए-यार के सिवा कुछ नहीं आता और उसे नज़र।
✍️ बाबू भंडारी "हमनवा" बल्लारपुर (महाराष्ट्र)
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कविता