मेरा जलना तेरा मुस्कुराना
ये उल्फत ही ऐसी हैं कभी जलाती हैं।
तो कभी हम पर मुस्कुराती हैं।
जब उल्फत हो जाए दर्द भरे रूह-ए-दिल में।
फिर चैन कहां उसे शब-ए-सहर में।
इसे ही तो कहते उल्फतों की दिल्लगी।
के कब मिल जाए वो सुहानी सी घड़ी।
हर पल वो इसी मदहोशी में खोया रहता हैं।
के कब सुनी सी...
दिल में उल्फत की मय भरी शमा जल जाए।
जब उन्हें हो जाएं...
हमसे उल्फत दिल की गहराईयों से।
जैसे अमावस की वीरानी में।
माहताब भी नूर हो जाए शब-ए-तारीक में।
के तब महकेगी उल्फत हमारे खुश्क-ए-जिस्त में।
पता हैं हम उल्फत करते हैं उन्हें दिल-ओ-जान से।
ये जानकार भी वे मुंह फेरा करते हैं हमसे।
"बाबू" इसी वजह से दिल हमारा जला करता हैं।
इसी वजह से उन्हें भी तो मुस्कुराना आता हैं।
✍️ वेंकट भंडारी "हमनवा" बल्लारपुर (महाराष्ट्र)
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कविता