वक़्त आज अपना मुझे उधार दे दो ।
मेरी तमन्नाओं में जो तस्वीर हैं, आज उससे मुलाक़ात कर लो ।
हसरतें तमाम मुख़ातिब हो जाएं तुमसे,
ऐसी दावत आज शाम के हवाले कर दो ।
मैं चाँदनी बनकर बिख़र जाऊं
दरवाजे पर,
तुम आकर मुझे आगोश में ले लो ।
सुन लो मेरी धड़कनो को,
नाम मेरे अपना वजूद कर दो।
उँगलियों से मेरे रुखसार पर
मोहब्बत की निशानी दे दो
मैं मिट गईं चाहतों में,
तुम अपनी अब अपनी ज़िंदगी में मुझे शामिल कर लो ।
लबों की ज़र्द ख़ामोशी को,
जामा दुनियांदारी के लिबास का दे दो।
मैंने जलाया हैं चिराग़,
घर आज आने की जहमत कर लो ।
बहुत पी लिया मैंने ज़ाम दर्द का,
अब ख़ुमार का इस्तक़बाल तुम भी कर लो ।
तेरे आने की जुस्तजू में आवारा हवा हो गईं हैं
दहशत शहर में अब आम हो गईं हैं ।
पानी सा ये रंग मेरे दामन को रंगता हैं,
एहसास बनकर रूह में मेरी गुजरता हैं ।
ये चुभती हुई सर्द रातें,
मेरे इश्क़ का पैमाना देखती हैं ।
तन्हाई के जंगल में आहट तेरी हो,
ये दुआ साँसे करती हैं ।
मशरूफियत तुम्हारी लाजिमी हैं,
लेकिन सवाल पर मेरे तेरा कुछ न कहना सवाल एक और खड़ा करता हैं ।
हंगामा ये समंदर का,
साहिल को आज़माता हैं ।
दूरियों का सफ़र ये,
तोहमत तेरे अक़्स पर मेरे क़त्ल की लगाता हैं ।
जुर्म ये दिल को तोड़ने का
बहुत खूब करते हो,
फ़िर भी हुकूमत दिल ए मासूम पर बेहिसाब करते हो...
नेहा
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कविता