वृद्धावस्था वरदान है अभिशाप नही

यह कविता मैने उन लोगों पर लिखी है जो अपने माता पिता को वोझ समझते हैं और उन्हे वृद्ध आश्रम मे छोड़ आते हैं 

         वृद्धावस्था वरदान है अभिशाप नही

       वृद्धावस्था नही है अभिशाप 
बुढापा है ईश्वर का दिया हुआ वरदान 
आओ वृद्धों का हम करें सम्मान 
इन के पास अथाह अनुभव और ज्ञान का भंडार 

   बुजुर्ग हमारी कीमती धरोहर, हमे इन पर है पूरा गुमान 
इन से ही है समाज की शान 
हम सब को इन पर गर्व और मान
क्यों न ग्रहण करे इन से सांसारिक ज्ञान 

   वृद्ध हमारे समाज का महत्वपूर्ण अंग 
इन का आशीर्वाद सदा चले हमारे संग संग 
इन के आशीष के बिना है हमारा जीवन बदरंग 
इन से सीखें हम जीने का ढंग 

   बुजुर्ग हमारे मार्गदर्शक 
 हमारे जीवन के पथ प्रदर्शक 
सदा हमारे रहें शुभचिंतक 
कभी नही बनते हैं मूकदर्शक 
अपने गहन अनुभव से हमारा जीवन बनाते सार्थक 

        वृद्धावस्था मे परिपक्वता आए
परिवार की जटिल उलझन सुलझाएं
परिवार मे सौहार्द का वातावरण लाएं 
आपसी झगड़े निपटाएं ,परिवार मे एकता बनाए 

    बुजुर्गों के बिना परिवार अधूरा
इन की छत्रछाया मे मिले सुख पूरा
देते सदा प्यार की ओट 
इन्ही से है परिवार लगे भरा-पूरा 

आओ इन से सीखें व्यवहारिक ज्ञान 
हमारा जीवन हो जाए मधुर और मुस्कान 
सदा करें बुजुर्गों का मान सम्मान 

                   अशोक शर्मा वशिष्ठ

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