सब्ज़बाग़ दिखा,मुझे बहला रहा है वो नए नए ख़्वाब मुझको

सब्ज़बाग़ दिखा,मुझे बहला रहा है वो
नए नए ख़्वाब मुझको दिखा रहा है वो

चुनाव का मौसम आ गया है तभी तो
बिन बादल ही दौलत बरसा रहा है वो

मैं ये कर दूंगा, मैं वो कर दूँगा, कहता है
शगूफे छेड़ कर मुझको हंसा रहा है वो

कल नन्गे पूँगे से बच्चे को गोद मे उठा लिया
इस तरह सबसे मुहब्बत जता रहा है वो

विलायती,देसी,रँग बिरंगी मय का लालच
मुफ्त में ही सबको देखो पिला रहा है वो

डॉ विनोद कुमार शकुचन्द्र

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