जैसी करनी वैसी भरनी
चोरी चुपके कर लो जी भर पाप
रब की नजर है तुम पे दिन रात
सत्यपथ पर बरसता है सोना
पापी के घर पर है रोना धोना
मिहनत की कमाई खाना आप
लुट की दौलत है जग में पाप
जिसने की है लुट की कमाई
जग वाले ने की है उनकी धुलाई
दया धर्म का तुम पाठ ही पढ़ना
मजबुरी का कभी फायदा ना लेना
दीन दुःखी को जिसने है रूलाया
पीढ़ी दर पीढ़ी सजा उसने पाया
कर लो जग में तुम मनमानी
धर्मराज ने लिख ली तेरी कहानी
सब का हिसाब चुकायेगा उसदिन
सूद समेत पायेगा तुँ एक दिन
अच्छी है करनी तो अच्छी है भरनी
बुरे काम से टुटता है पेड़ की टहनी
वक्त आयेगा जार जार ही रोयेगा
पाप की घड़ा जब जग में भर जायेगा
उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
9546115088
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कविता