मंगल मूर्ति गजानना



               मंगल मूर्ति गजानना
                        दोहे 
मंगल  रूप  गजानना ,श्रीगणपति भगवान।
सेवा  सिध्द  सुमंगलम ,देहु   दया  गुणगान।।
मानव  धर्म सुकर्म  रत ,चलूँ  भोर  की ओर।
गिरिजा पुत्र गरिमामय,करहु  कृपाकी कोर।।

अमंगलकर हरण सदा,मंगल करते बरसात।
वरदहस्त सु-वरदायक,शरपर रख  दो हाथ।।
त्याग बुरा विकर्म सभी ,धरूं  धर्म  पर पांव।
भव  सागर  से  किजीए, पार  हमारी  नाव।।

नाशक तमअरू विघ्नके ,देहु सरस आलोक।
भूल भरम मम मेट कर,सदा  निवारहु शोक।।
प्रथम विनायक पूज्य  हैं, देवन  में अगुआन।
देहु दयाकर दरस हरि,शुभदा  सजग महान।।

लोभ  मोह  का   कीजिए, हे  लम्बोदर  नाश।
देश  प्रेम  सु- ओत -प्रोत ,बढ़े  प्रेम  विश्वास।।
हे  गणनायक  गजानन ,गणपति गूढ गणेश।
उर   के  मध्य   विराजिए , देहु  दिव्य संदेश।।

काव्य कला शुचि कौशलम्,मिले हर्ष उत्थान।
जन जीवन जग जीवका,जिससे हो कल्यान।।
कृपासिन्धु यशखान हो,सत्य शांति शुभधाम।
भक्ति शक्ति  की  चाह  है, धुर कवि बाबूराम।।

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बाबूराम सिंह कवि 
बडका खुटहाँ, विजयीपुर 
गोपालगंज (बिहार)841508
मो॰नं॰ - 9572105032
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