तू मेरा कस्तूरी है
धूप जेठ की ताप दुपहरी, साँझ लगे सिंदूरी है।
मन उद्वेलित मृग मरीचिका
मेरा तू कस्तूरी है॥
पतझड़ की मादक दोपहरी,
मधुकर की तू गुंजन है।
बन कर पवन बसंत घूमते
दिल पाखी क्यूँ खंजन है॥
जी लेंगी तेरे बिन दुनिया,मिलना मुझे जरूरी है,
मन उद्देलित मृग मरीचिका,मेरा तू कस्तूरी है॥
मोती बिना सीप ये खाली,
जैसे लहर बिना सागर।
परबत तरु बिना बंजारा,
ये मन था औंधी गागर॥
हूँ अपूरन मिलो बनु पूरन ,जनम तुम बिन अधूरी है
मन उद्देलित मृग मरीचिका,मेरा तू कस्तूरी है॥
मन खेले मन भर भर होली,
उड़ते हियरा में गुलाल।
अंखिया सजी मूरत प्यारी,
मन करते दर्शन सवाल॥
वेगवती है मन की सलिला,तू धारे की धूरी है,
उद्देलित मन मृग मरीचिका,मेरा तू कस्तूरी है॥
ममता तिवारी "ममता"
धूप जेठ की ताप दुपहरी, साँझ लगे सिंदूरी है।
मन उद्वेलित मृग मरीचिका
मेरा तू कस्तूरी है॥
पतझड़ की मादक दोपहरी,
मधुकर की तू गुंजन है।
बन कर पवन बसंत घूमते
दिल पाखी क्यूँ खंजन है॥
जी लेंगी तेरे बिन दुनिया,मिलना मुझे जरूरी है,
मन उद्देलित मृग मरीचिका,मेरा तू कस्तूरी है॥
मोती बिना सीप ये खाली,
जैसे लहर बिना सागर।
परबत तरु बिना बंजारा,
ये मन था औंधी गागर॥
हूँ अपूरन मिलो बनु पूरन ,जनम तुम बिन अधूरी है
मन उद्देलित मृग मरीचिका,मेरा तू कस्तूरी है॥
मन खेले मन भर भर होली,
उड़ते हियरा में गुलाल।
अंखिया सजी मूरत प्यारी,
मन करते दर्शन सवाल॥
वेगवती है मन की सलिला,तू धारे की धूरी है,
उद्देलित मन मृग मरीचिका,मेरा तू कस्तूरी है॥
ममता तिवारी "ममता"
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कविता